डॉ- पुष्पलता 

गीत ये दिल आशना-सा कहां ले के जाएं


भटकती हुई-सी 
सभी बीथिकाएं
ये दिल आशना-सा
कहां लेके जाएं।
न शीशे सी नदियां
न सोंधी-सी मिट्टी
न पढ़ती वे आंखें
न वो मन की चिट्ठी
न पानी के धारे
हरित वो किनारे
कहां वो शिकारे
वे ठंडी हवाएं।
न नूरे नजर है
न आंखों में पानी
न शीशा ए दिल की
वो खुशबू पुरानी
उबलता समां है<....

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