अरुणा सब्बरवाल

आख़री धागा 

अभी तक वह , उस सदमें से उभर नहीं पायी थी । आम सदमों जैसा सदमा नहीं था वो ...वो तो एक  ऐसा ...सदमा था , जिसका तो अनुमान लगाना भी सम्भव नहीं था ।सदमे भी दो प्रकार के होते हैं ।एक ऐसे ,जो दिल पर केवल ज़ख़्म देते हैं ,फिर वक़्त के साथ भर जाते हैं ...और दूसरे , जो घुन बन कर भीतर ही भीतर ही कलेजा काटते रहते हैं ऐसे में ,इंसान के बस में कुछ नहीं रहता । उसके लिये यह एक ऐसा ही सदमा था, जिसने उसकी रात....

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