लिखो
कि अभी सपने देख़ने की मनाही नहीं हुई है
और फूलों को खिलकर मुरझाने के लिए
एक आज की मुहलत मिली हुई हैः
शब्द घायल भले हो गए हों
उनमें सोच, चीख़ और प्रार्थना बचे हुए हैं
कि उन सभी की कथा लिखो जानी है
जो अकारण निरपराध मारे जा र....
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हिन्दी साहित्य की पत्रिकाओं की भीड़ में अलग पहचान बनाने वाली 'पाखी' का प्रकाशन सितंबर, 2008 से नियमित जारी है।