पंकज शर्मा

आदिवासी जीवन का आईना: जंगल का दाह

सन् नब्बे के बाद हिंदी कहानी की दिशा एक बार फिर बदलती है। इस दौर में भले नई कहानी आंदोलन (1950-60) जैसा शोर-शराबा नहीं होता है लेकिन इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता है कि हिंदी कहानी आहिस्ता-आहिस्ता ही सही, अपना रूप बदलकर अवतरित हो जाती है। एक और खास बात यह हुई कि जिस तरह से नयी कहानी आंदोलन में अचानक दो दर्जन से अधिक महत्वपूर्ण कथाकार एक साथ कहानी लेखन में सक्रिय हुए थे, ठीक उस....

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