मैं जानती हूँ मुझ जैसी लड़कियों की बात सुनने को कोई भी तैयार नहीं होता। और अगर कोई दयालु हमारी बात सुन भी ले तो उसके चेहरे पर अविश्वास की लकीरें उसके लाख छुपाने पर भी आ ही जाती हैं। और शायद इस लिए मैं अपनी बात किसी से नहीं करती, किसी से नहीं कहती। इसलिए अपने-आपसे ये बातें कहती-सुनती रहती हूँ। सच कहूँ तो इस कहने-सुनने में कहना तो भला क्या, पूछना ही पूछना रहता है, पर ये सवाल किससे ....
