दुर्गेश तिवारी


घुटन

बंद दरवाजे के पीछे से, 
उस सुनसान सड़क को,
वो बेसब्री से घूर रही थी 
शायद कोई निकलेगा
वह जरूर पुकारेगी, 
उस मुसाफिर को इस बार
भले ही वह उसकी कमाई ले ले, 
पर निकाल ले।
इस घुटनभरी व जिल्लत से 
लबरेज जिंदगी से
जहां उसका जिस्म नोंचने आते हैं 
कुछ हैवान, वह अक्सर आसमान में 
फैले सितारों को देखती है
उसकी चमक भी इनसे एक <....

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